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क्या आप जानते हैं एक इंसान के बचपन की दिनचर्या क्या होती हो जाने इस रिपोर्ट में।

क्या आप जानते हैं एक इंसान के बचपन की दिनचर्या क्या होती हो जाने इस रिपोर्ट में।

बचपन की दिनचर्या

(कफ से प्रभाव वालों की दिनचर्या पहले दिन से 14 वर्ष तक)

  • बचपन (पहले दिन से 14 वर्ष तक) में कफ का प्रभाव अधिक होता है। उस समय वात और पित्त, कफ की तुलना में बहुत कम होता है। 14 वर्ष तक, 8 से 10 घण्टे सोना भी अनुकूल ही माना गया है। 14 वर्ष तक, वात या पित्त की समस्या होना यानी वात और पित्त बिगड़ने की स्थिति में ही सम्भव है। वात के असर में नींद बहुत कम आती है।
  • पहले दिन से 4 वर्ष तक के बच्चों को कम से कम 16 घण्टे की नींद लेनी चाहिए। 4 वर्ष से 8 वर्ष तक के बच्चों को 12 से 14 घण्टे तक की नींद लेनी चाहिए। 8 वर्ष से 14 वर्ष तक के बच्चों को 8 से 10 घण्टे की नींद लेनी चाहिए।
  • कफ चिकना और भारी होता है। भारी वस्तुएं शरीर का रक्त दबाव बढ़ाती हैं। ऐसा भारी वस्तुओं के अधिक गुरूत्व के कारण होता है। भारी वस्तुओं में गुरूत्व अधिक होता है। इसलिए कफ की स्थिति में अधिक सोना चाहिए क्योंकि नींद लेते समय शरीर का रक्त दबाव हमेशा कम होता है। सोते समय रक्त दबाव या तो सामान्य होता है या तो सामान्य से कम होता है और जागने की अवस्था में रक्त दबाव सामान्य या सामान्य से थोड़ा ज्यादा होता है। इसलिए बच्चों को सूर्यास्त के दो घण्टे के अन्दर सो जाना चाहिए। ऐसा बच्चों को टी0वी0 से दूर रखकर किया जा सकता है। बिगड़ा हुआ कफ बच्चों को चिड़चिड़ा बनाता है जिससे गुस्सा अधिक आता है। 

  • कफ अधिक बिगड़ जाने से मन नियंत्रित नहीं होता है जिसके कारण ऐसा व्यक्ति कोई भी अपराध कर सकता है। कफ के असर में प्रेम बहुत पैदा होता है। अतः कफ प्रेम भी पैदा करता है और क्रोध भी पैदा करता है। कफ जब तक नियंत्रण में है तब तक प्रेम सद्भाव पैदा करेगा और यही नियंत्रण के बाहर हो जाता है तो व्यक्ति के स्वभाव को खतरनाक बना देता है।
  • अमेरिका की कुल आबादी 27 करोड़ है, और इसमें से 3 करोड़ के करीब बच्चे हैं। इन तीन करोड़ बच्चों में 30 लाख बच्चे जेल में बन्द है। ये बच्चे 10, 11, 12 साल या इसके आस-पास के हैं। ऐसी ही स्थिति कनाड़ा, ब्रिटेन, फ्रांस, जर्मनी, स्वीडेन, स्वीटजरलैंड की है। इन देशों के 65 से 60 प्रतिशत अपराध बच्चे करते हैं, अपराध चाहे जो हो। अतः यहाँ के बच्चों का कफ बिगड़ा हुआ होता है। इसलिए कफ को नियंत्रित करने के लिए नींद भरपूर लीजिए और लेने दीजिए। शरीर की प्रकृति और अवस्था के हिसाब से कफ के असर में पढ़ाई नहीं हो सकती है, पढ़ाई पित्त के असर में अधिक होती है अर्थात पित्त बढ़ना चाहिए और कफ कम होना चाहिए।

  • आज के समय की स्कूली शिक्षा का 90 प्रतिशत हिस्सा किसी के कोई काम नहीं आता है। बच्चों के स्कूल का समय दोपहर को ही होना चाहिए।
  • हृदय से ऊपर मष्तिष्क तक कफ का क्षेत्र है। हृदय से नीचे नाभि तक पित्त का क्षेत्र है। नाभि से नीचे पूरा वात का क्षेत्र है। बच्चों के ज्यादातर रोग छाती के ऊपर वाले (कफ) ही होंगे, जैसे- नाक बहेगी, जुकाम होगा, खासी होगी ये सब कफ के रोग हैं। कफ के प्रभाव को सन्तुलित करने के लिए नींद के बाद दूसरी चीज है बच्चों की तेल मालिस। अतः बच्चों की रोज तेल मालिस होनी ही चाहिए।
  • बच्चों को या कफ की अधिकता वाले लोगों को या जिनका कफ बढ़ा हुआ हो उनको व्यायाम नहीं करना चाहिए। जैसे- प्राणायाम, योग आसन आदि । व्यायाम, प्राणायाम या योग उनके लिए बहुत अच्छा है जो पिस के प्रभाव में हैं। वात के प्रभाव वालों को बहुत मामूली व्यायाम करना चाहिए।

  • देशी गाय का घी बच्चों की आँखों में डाल सकते हैं या लगा सकते हैं। तेल आँखो में नहीं डालना चाहिए। देशी गाय के घी भी उपलब्धता नहीं होने पर आँखों में काजल लगाया जा सकता है। काजल मतलब कार्बन, कार्बन कफ को शान्त करने में बड़ी भूमिका निभाता है। काजल (सौव्यीर अंजन) बनने में गाय का घी, गाय का दूध, दारू हल्दी ऐसी ही 5-7 वस्तुएं प्रयोग में लायी जाती हैं।
  • कफ के प्रभाव की स्थिति में खान-पान में दूध सबसे आवश्यक वस्तु है। दूसरी वस्तु है मक्खन, तीसरी वस्तु है घी उसके बाद तेल, उसके बाद है मट्ठा, उसके बाद गुड़ है। ये सब कफ को शान्त करते हैं। गुड़ के साथ बच्चों को तिल, मूँगफली आदि वस्तुएं जरूर खिलाना चाहिए। ये सारी वस्तुएं रोज के खान-पान में होनी चाहिए। ये सारी वस्तुएं भारी हैं और भारी वस्तुएं कफ को सन्तुलित रखने में मदद करती हैं।
  • मैदा बच्चों को कभी नहीं खिलाना चाहिए, मैदा या मैदे की बनी हुई कोई भी वस्तु बच्चों को नहीं खिलाना चाहिए। क्योंकि मैदे की चीजें कफ को बिगाड़ने वाली होती हैं।

  • शरीर की मालिश तेल से हमेशा स्नान करने से पहले होनी चाहिए और मालिश करते समय जब उनके बगल में (शरीर पर) पसीना आ जाय तो मालिश रोक दें। माथे पर पसीना आने पर भी मालिश रोक देनी चाहिए। नहाते समय कफ को कम करने वाली वस्तुओं का प्रयोग करना चाहिए। जैसे-चने का आटा, चन्दन की लकड़ी का पाऊडर, मसूर की दाल का आटा, कोई भी मोटा आटा, मूंग की दाल का आटा अर्थात बच्चों का स्नान इन्हीं से कराएं तथा साबुन न लगाएं। साबुन सोडियम आक्साइड यानी कास्टिक सोडा से बनता है, जो कि कफ को भड़काने वाली वस्तु है। अतः साबुन कभी भी न लगाएं। मुल्तानी मिट्टी से भी स्नान कर सकते हैं। उबटन लगाएं, साबुन और आँखों की बहुत ही गहरी दुश्मनी है। अतः इसका प्रयोग बिल्कुल भी न करें।
  • 12 से 4 बजे के बीच में पित्त बढ़ता है। इस समय घी की बनी हुई वस्तुएं ज्यादा खिलाना चाहिए। शाम को वात को कम करने वाली चीजें ही खिलाएं।

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क्या आप जानते हैं पानी पीने के सही नियम क्या हैं । Do You Know What Are The Correct Rules For Drinking Water?  भोजन के अन्त में या बीच में पानी पीना विष पीने के बराबर है। कम से कम डेढ़ घण्टे के बाद पानी पीना चाहिए। खाया हुआ भोजन डेढ़घण्टे तक जठर अग्नि के प्रभाव में रहता है। किसान और मेहनत के काम करने वाले लोगों के लिए 1 घण्टे बाद पानी पीना चाहिए। जानवरों के शरीर में चार घण्टें तक जठर अग्नि का प्रभाव होता है। पहाड़ी क्षेत्र में अग्नि का असर दो से ढाई घण्टे तक रहेगा। भोजन के पहले पानी कम से आगे पढ़ें 

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