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यदि आप इस गुणवत्ता वाले गुड़ का सेवन करते हैं तो जाने इसके लाभकारी गुण।

यदि आप इस गुणवत्ता वाले गुड़ का सेवन करते हैं तो जाने इसके लाभकारी गुण।

गुड़ का महत्व

  • ठण्ड के दिनों में पित्त कम होगा, वात थोड़ा बढ़ा हुआ रहेगा और कफ सबसे अधिक बढ़ा हुआ होगा। कफ का असर हमारी जठराग्नि पर होता है जिससे जठराग्नि थोड़ा कम (मंद) होती है। इसलिए सर्दी के दिनों में तिल, गुड़, मूंगफली खाना चाहिए और घी सबसे ज्यादा खाना चाहिए।
  • कफ को शान्त रखने के लिए गुड़ सबसे अच्छा होता है। कफ को संतुलित रखने के लिए शहद भी अच्छी होती है। इसलिए जो शहद खा सकते हैं उन्हें शहद खाना चाहिए और जो गुड़ खा सकते हैं उन्हें गुड़ खाना चाहिए।
  • कफ जब भी बिगड़ता है तो शरीर में फास्फोरस की कमी आ जाती है। शरीर में फास्फोरस के पूरक के रूप में बहुत थोड़ी मात्रा में आर्सेनिक होना चाहिए जिससे फास्फोरस को ताकत मिलती है। लेकिन आर्सेनिक शरीर के लिए एक प्रकार का जहर है इसलिए इसकी मात्रा शरीर में बढ़नी नहीं चाहिए। गुड़ में भरपूर मात्रा में फास्फोरस होता है और बहुत थोड़ी मात्रा में आर्सेनिक होता है। इसलिए कफ को नियंत्रित करने के लिए गुड़ अवश्य खायें। गन्ने के रस से ज्यादा फास्फोरस गुड़ में होता है।
  • गुड़ एक दिन के बच्चे को भी खिलाया जा सकता है। बशर्ते यह जैविक होना चाहिए। गुड़ से भी अच्छी स्थिति का फास्फोरस तरल गुड़ /राब / काक्वी में होता है।
  • सफेद गुड़ कभी न खायें। गुड़ हमेशा ताम्बई रंग का खायें या काले रंग का खायें। गुड़ के अतिरिक्त जो भी मिठाइयां हैं, वह स्वास्थ्य की दृष्टि से अच्छी नहीं होती हैं जैसे चीनी। क्योंकि चीनी बनते ही फास्फोरस समाप्त हो जाता है। चीनी से शरीर में सबसे अन्त में अम्ल बनता है।

  • गुड़ से शरीर में सबसे अन्त में क्षार बनता है। चूंकि शरीर में अम्ल बनता है तो चीनी खाने से वात के कई सारे रोग जन्म लेना शुरू कर देंगे। गुड़ से बनने वाला क्षार पेट के अम्ल को संतुलित करता रहता है जिसके कारण रोगों की संभावना नहीं बनती है।
  • चीनी को पचाने के लिए पेट को वैसी ही ताकत लगानी पड़ती है जैसी ठण्डे पानी को शरीर के तापमान पर लाने में लगानी पड़ती है। चीनी सबसे देर में पचती है। गुड़ पेट की सभी चीजों को पचाता है और चीनी को पेट को पचाना पड़ता है।
  • ब्रह्मचारी लोगों के लिए चीनी बहुत खराब है। जैविक गुड़ (केमिकल रहित) सबसे उत्तम होता है।
  • दही में गुड़ मिलाकर ही खाना चाहिए लेकिन दूध में गुड़ मिलाकर कभी नहीं लेना चाहिए। दूध पीने के पहले या बाद में गुड़ खा सकते हैं। दही में गुड़  मिलाने से दही के दोष समाप्त हो जाते हैं।
  • तिल का वही गुण होता है जो गुड़ का होता है। इसलिए तिल और गुड़ अवश्य खाना चाहिए।
  • मूंगफली भी क्षारीय है अर्थात इसे भी गुड़ के साथ अवश्य खाना चाहिए। इसे नवम्बर, दिसम्बर, जनवरी, फरवरी में जरूर खाना चाहिए। इससे कफ संतुलित रहेगा।
  • कफ का सबसे खराब रोग मोटापा है। मोटापा कम करने के उद्देश्य से भी आप गुड़, मूंगफली, तिल आदि खा सकते हैं। मोटापा कम हो जायेगा।
  • गुड़ या गुड़ की बनी हुई कोई भी वस्तु खाने में से जहर को कम करने का काम करती है।

चीनी खाने से होने वाले नुकसान

  • चीनी कभी न खायें। चीनी में शरीर को काम आने वाला एक भी पोषक तत्व नहीं होता है। चीनी का मीठापन शुक्रोज के कारण होता है जो कि शरीर में हजम नहीं होता है। बहुत मुश्किल से होता है जिसके साथ इसे आप खाओगे उसे भी ये हजम नहीं होने देगा। जो मीठापन हमारे काम का है उसका नाम है फ्रक्ट्रोस। चीनी को छोड़कर भगवान की बनाई हर मीठी चीज में फ्रक्ट्रोस होता है। सभी फलों में मीठापन फ्रक्ट्रोस के कारण होता है। चीनी तभी से भारत में आयी है जब से अंग्रेज आये हैं। 1868 में सबसे पहली चीनी मिल लगी। पहले इसे मुफ्त में बंटवायी गयी। चीनी से मोटापा बढ़ता है। चीनी से कोलेस्ट्राल बढ़ता है जिससे 103 बीमारियां आती हैं। चीनी छोड़ने के बाद घुटने का दर्द, कमर दर्द, गर्दन का दर्द सब में आराम मिलेगा। माइग्रेन, सर्दी-जुकाम, नींद अच्छी आयेगी। स्नोफीलिया, साइनस जैसी बीमारियों से भी लाभ मिलने लगेगा। चीनी बनाने में पानी बहुत बर्बाद होता है। चीनी मिलों के कचरे से वातावरण बहुत प्रदूषित होता है।
  • चीनी में सबसे ज्यादा सल्फर पाया जाता है। जिसे हिन्दी में गंधक कहते हैं। जो कि पटाखे बनाने में इस्तेमाल होता है। ये सल्फर अन्दर जाने के बाद बाहर नहीं निकलती है।
  • टी०बी० या किसी भी प्रकार से प्रचारित की जाने वाली वस्तु के प्रयोग से बचें या सेवन न करें। प्रयोग करने से पूर्व उस वस्तु के बनाने की विधि अवश्य जान लें।
  • गुड़ में पोटैशियम, फास्फोरस, कैल्सियम आदि सभी पोषक तत्व हैं। गुड़ बनाने के लिए बाहर से कुछ भी मिलाया नहीं जाता है। भोजन के बाद थोड़ा गुड़ जरूर खायें क्योंकि ये भोजन को पचाने में बहुत मदद करता है।

भारतीय रसोई घर का महत्व

  • दुनिया का सबसे बड़ा औषधि केन्द्र हमारा रसोई घर है। रसोई दुनियाँ का सबसे पवित्र स्थान है। हमारे रसोई में जितने मसाले हैं, सब औषधि हैं। मसाला अरेबिक शब्द है ये फारसी से अरबी में आया और अरबी से हमारी हिन्दी में घुस गया। मुगलों के शासन काल से इस शब्द का प्रयोग अधिक होने लगा। इनके पहले इस शब्द का प्रयोग हमारे शास्त्रों में नहीं मिलते हैं। शास्त्रों में हर स्थान पर औषधि शब्द का प्रयोग किया गया है।
  • रसोई घर मे पिछले 25 सालों में हुए बदलाव हमारी बीमारियों की जड़ हैं। जैसे- मिक्सी, फ्रिज, प्रेशर कूकर, माइक्रोवेव ओवन, रोटी बनाने की मशीनें, पोछा लगाने की मशीनें, झाडू लगाने की मशीनें आदि। 18-60 साल तक शरीर श्रम करना चाहिए। पहले शरीर श्रम से लोग थकते थे, बोर नहीं होते थे। बोरियत भारतीय शब्द नहीं है।
  • आज की GDP की गणना का सूत्र अग्रेजों द्वारा दिया गया है। इसकी गणना के घटक में पुलिस विभाग पर किया जाने वाला खर्चा, यदि चोरियाँ बढ़ी या डकैतियाँ बढ़ी या जनता को नियंत्रित करने में किये जाने वाले खर्चे सब बढ़ने से GDP बढ़ता है। गृह उद्योग में की जाने वाली चीजें GDP की गणना में शामिल नहीं किये जाते हैं।
  • महिलाओं में आत्मा नहीं होती है ऐसा अंग्रेज मानते हैं। क्योंकि ऐसी मान्यता अंग्रेजों द्वारा माने जाने वाले दार्शनिकों द्वारा दी गयी है। जैसे-सुक्रात, अरस्तु, प्लुटो, रूसो आदि। इसी प्रकार उनकी सभ्यता और संस्कृति में हमेशा से स्त्रियों का स्थान सबसे निम्न स्तर का रहा है।

प्राकृतिक और अप्राकृतिक मिठास

  • शक्कर तीन प्रकार की होती है- ग्लूकोज, शुक्रोज और फ्रक्ट्रोज। फल और गुड़ की मिठास फ्रक्ट्रोस के कारण होती है। जो कि प्रकृति के द्वारा बनाई हुयी वस्तुओं में ही पायी जाती है अर्थात इस प्रकार की वस्तुएं डायबिटीज के मरीज भी खा सकते हैं। शहद भी खा सकते हैं। बशर्ते इनके साथ त्रिफला लेते रहें।
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