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कब्ज एक घातक बीमारी का स्वरूप या हमारी अज्ञानता का रूप

कब्ज एक घातक बीमारी का स्वरूप या हमारी अज्ञानता का रूप ! Constipation is a form of a deadly disease or a form of our ignorance.

कब्ज एक घातक बीमारी का स्वरूप या हमारी अज्ञानता का रूप

 

आज के समय पेट से संबंधित 'कब्ज' नाम की समस्या ने एक आम रोग का रूप ले लिया है। ऐसा देखने में आ रहा है कि आबादी के एक बड़े हिस्से का नियत समय पर प्राकृतिक रूप में पेट साफ़ नहीं होता। इसलिए ज्यादातर लोगों को अपना पेट साफ़ करने के लिए नियमित तौर पर ' जुलाब' की जरूरत पड़ने लगी है।

आबादी के बड़े हिस्से को, जो स्वयं को ज्यादा सभ्य, समझदार, संपन्न और सुशिक्षित समझता है, कब्ज नाम की समस्या ने बुरी तरह से अपने चंगुल फंसा लिया है। इसलिए ऐसे अधिकांश लोगों को अपना साफ़ करने के लिए रोजाना ही कोई न कोई जुलाब लाने वाली दवा (चाहे वह कुदरती तत्वों से बानी हो या संश्लेषित रसायनों द्वारा ) लेने पर मजबूर होना पड़ है।

दरअसल, 'कब्ज' को एक ऐसी शारीरिक अवस्था के रूप में देखा जाने लगा है, जो शुरुआत में तो ज्यादा तकलीफ देह सिद्ध नहीं होती, किन्तु जैसे-जैसे समय गुजरता जाता है और यह पुरानी होती जाती है, वैसे-वैसे यह एक 'महारोग' का रूप अख्तियार करने लगती है। देखने आया है कि शुरू में कब्ज की वजह से सिर्फ पेट ही ख़राब बना रहता है और भूख ही घटती जाती है। कुछ लोगों में मुँह का स्वाद बिगड़ने लगता है और शरीर में बेवजह आलस्य और पेट में भारीपन बना रहता है। और जैसे-जैसे कब्ज की समस्या जीर्ण रूप ग्रहण करती जाती है, वैसे-वैसे ही व्यक्ति के शरीर में सैकड़ो प्रकार की व्याधियां पैदा होने लगती हैं। इसलिए इन रोगियों में मुँह के छाले एवं गले जीभ के जख्म से लेकर खून की कमी यकृत (लीवर) की खराबी, बाल झड़ने, नेत्र ज्योति घटने, पित्ताशय में पथरी बनने (स्टोन इन गॉड ब्लैडर), आंत्र में जख्म बनने, आंत्र कैंसर और हृदय रोग तक अधिक देखे जाते हैं।

कब्ज के प्रमुख कारण 

1. जीवनशैली में आया बदलाव

 

समस्त प्राणी जगत में एकमात्र मनुष्य ही ऐसा प्राणी है, जिसके ऊपर विकास क्रम का सर्वाधिक प्रभाव पड़ा है। वैज्ञानिकों का मानना है कि मनुष्य शरीर में पहला बदलाव आज से चालीस हजार वर्ष पहले उस समय पर आया, जब मनुष्यों ने चौपालों की तरह चार पैरों से चलने की वजाये अपने दो पैरों के सहारे खड़े होना शुरू किया। ऐसा करने से उसके दो पैर, हाथों के रूप में बदलकर अन्य तरह के कार्य करने के लिए स्वतंत्र हो गए। इससे उसके शरीर का एक बड़ा हिस्सा भी पृथ्वी के समान्तर रहने की वजाये उर्ध्वाकार अवस्था में आ गया। अन्यथा इससे पहले तक मनुष्य (शेष समस्त प्राणियों ला शरीर अब भी ) का शरीर पृथ्वी समान्तर ही बना रहता था। मानव जीवन में दूसरा बदलाव तब आया, जब उसने विकास क्रम से पायी अपनी प्राकृतिक जीवनशैली, खानपान की आदत और रहन सहन के ढंग में एकाएक बदलाव करना शुरू कर लिया। ऐसा मन जाता है कि जीवनशैली से सम्बंधित ऐसे बदलाव एक से डेढ़ शताब्दी पहले तब शुरू हुए जब साड़ी दुनिया में ही औधोगिक विकास ने जोर पकड़ा। औधोगिक विकास के साथ ही आधुनिक खानपान और सोच का तेज़ी से प्रसार हुआ।

2. नाभि का विस्थापन हो जाना

 

नाभि का विस्थापन भी कब्ज का एक प्रमुख कारण है। ऐसा देखा गया है कि लम्बे समय तक आगे की ओर झुक कर कुर्सी, पलंग या ड्राइविंग सीट के ऊपर बैठे रहने से वृहदांत्र पर निरंतर दबाव बना रहता है। इससे एक तरफ आंत्र संसथान में मल को आगे बढ़ने में रूकावट आती है तो दूसरी तरफ नाभि के आसपास स्थित रहने वाला 'सोलर प्लेक्सिस' नामक स्नायु तंत्रिका जाल प्रभावित होने लगता है। नतीजन आंत्र में पचे हुए और बिना पचे हुए आहार को बढ़ने में रूकावट आने से भोजन के पाचन, अवशोषण में ही परेशानी नहीं आती, बल्कि कब्ज भी रहने लगती है

 

3.खानपान में आया बदलाव

 

पुराने समय में एक कहावत खूब प्रचलित रही है, 'खाया-पिया आहार अगर शरीर में ठीक ढंग से हजम होता रहे तो शारीरिक स्वस्थ्य ठीक-ठाक बना रहता है, लेकिन जब आहार का हाज्मा ठीक ढंग से न हो पाए, तो अच्छा खाते-पीते रहने के बावजूद शारीरिक स्वास्थ्य बिगड़ता चला जाता है।' यह बात आज के सन्दर्भ में एक दम सटीक बैठती है। क्योंकि अब लोग अच्छा कहते-पीते रहने के बावजूद अक्सर शारीरिक कमजोरी की शिकायत करते रहते हैं। लोग शीघ्र बीमार होने लगे हैं। सम्भवता इसका मूल कारण यही हैं कि लोगों के शरीर में खाया-पिया आहार अब ठीक ढंग से नहीं पचता। इसी वजह से पौष्टिक आहार लेते रहने बावजूद उनमे शारीरिक कमजोरी से लेकर विभिन्न तरह के रोग तेज़ी से पैदा होने लगे हैं। आहार विज्ञानी भी मानने लगे है कि आहार को सही रूप में हजम न कर पाने के पीछे मनुष्यों की अपनी कई गलत आदतें जिम्मेदार हैं। इनमे जीवनशैली और खानपान तौर-तरीके तो सबसे प्रमुख हैं।

कब्ज के स्थाई इलाज की प्रक्रिया

पेट को साफ रखने और कब्ज से पीछा छुड़ाने के लिए हमारे पास अनेक तरह की कारगर दवाएं एवं उपचार के तरीके उपलब्ध है। इनमे संश्लेषित रस्यनों युक्त आधुनिक दवाएं, हर्बल दवाएं और प्राकृतिक चिकित्सा पैथी आधारित एनिमा जैसी प्रक्रिआएं तो खूब प्रचलित हैं।

1. आधुनिक आयुर्विज्ञान की दवाएं

 

आधुनिक स्वास्थ्य विशेषज्ञ कब्ज को ज्यादा गंभीरता से नहीं लेते। आधुनिक आयुर्विज्ञान कब्ज को मल की खुश्की या कम मात्रा में मल बनने के रूप में लिया जाता है। फिर भी कब्ज से छुटकारा पाने के लिए आधुनिक चिकित्सक 'लिक्विड पैराफिन', मिल्क ऑफ़ मैग्नीशिया' और 'डॉकुसेट' जैसी अनेक दवाओं का प्रयोग अपने रोगियों को कराते देखे जाते हैं।

लिक्विड पैराफिन और मिल्क ऑफ़ मैग्नीशिया जैसी दवाओं का उपयोग तो पिछले साठ-सत्तर सालों से ही सफलतापूर्वक किया जा रहा है। यह दोनों दवाएं आंत्र संस्थान में तरल का संचय एकाएक बढ़ाकर मल की मात्रा में वृद्धि करती है।

2. कब्ज का आयुर्वेदिक इलाज

 

आयुर्वेदिक प्रणाली में कब्ज उपचार के तौर पर प्राय: सनाय पत्र के अलावा हरड, बहेड़ा, आंवला (तीनो का संयुक्त रूप त्रिफला), बेल फल, इसबगोल छिलका, घृतकुमारी सत्व,अमलतास, इन्द्रायण आदि से निर्मित दवाओं का उपयोग कराया जाता है।

आयुर्वेद की हर्बल आधारित दवाएं आधुनिक कृत्रिम रसायनों से निर्मित दवाओं के मुकाबले काफी सुरक्षित होती हैं। इसलिए इनको लम्बे समय तक इस्तेमाल किये जाने पर भी कोई ज्यादा बुरा असर व्यक्ति के शरीर पर नहीं पड़ता। यद्यपि आयुर्वेद की जिन हर्बल दवाओं में सनाय पत्र के अलावा जमालघोटा और इन्द्रायण फल आदि का बहुतायत से प्रयोग किया जाता है, उनके विषय में ऐसा बिलकुल नहीं कह सकते। यह सब पाचन संसथान पर बहुत ही बुरा असर डालने वाले साबित होते होती है। अतः इन दवाओं का लंबे समय तक किसी भी सूरत में सेवन नहीं किया जाना चाहिए।

 

कब्ज की दशा में क्या खाएं और क्या न खाएं

 

1. कब्ज की शुरुआत दिन में कई-कई बार चाय, कॉफ़ी पीते रहना या फिर शराब का अभ्यस्त बन जाने से भी हो सकती है।

2. शराब पीने से एक तरफ तो ज्यादा मात्रा में मूत्र बनने लगता है, तो दूसरी तरफ पसीने की दर भी एकाएक बाद जाती है। इन दोनों अवस्थाओं में शरीर के अंदर तरल पदार्थ की कमी होने लगती है। इतना ही नहीं इन लोगों के शरीर कई प्रकार के विटामिन एवं खनिज तत्व भी व्यर्थ बहकर जाने लगते हैं। इससे इनकी अंतड़ियों में मल तेज़ी से खुश्क होकर कब्ज की समस्या पैदा करता है।

3. कब्ज का सम्बन्ध कई प्रकार की दवाओं के साथ भी रहता है। ज्यादातर प्रतिजीवी दवाओं (एंटीवायोटिक) के सेवन में तो बार-बार दस्त (डायरिया की शिकायत) के लिए जाना पड़ता है, किन्तु जैसे ही इन दवाओं का कोर्स पूरा होता है एवं इनका सेवन बंद किया जाता है, वैसे ही अगले दिन लोगों को कब्ज की शिकयत शुरू होने लगती है।

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